भारत में हनुमान जी को अजेय माना जाता है. हनुमान जी अष्टचिरंजीवियों में से एक हैं. कलयुग में हनुमान जी ही एक मात्र ऐसे देवता हैं जो अपने भक्तो पर शीघ्र कृपा करके उनके कष्टों का निवारण करते हैं. मंगलवार भगवान हनुमान का दिन है. इस दिन व्रत रखने का अपना ही एक अलग महत्व है.
मंगलवार व्रत की विधि
मंगलवार व्रत की कथा इस प्रकार से है. प्राचीन समय में ऋषिनगर में केशवदत्त ब्राह्मण अपनी पत्नी अंजलि के साथ रहता था. केशवदत्त को धन-संपत्ति की कोई कमी नहीं थी. सभी लोग केशवदत्त का सम्मान करते थे, लेकिन कोई संतान नहीं होने के कारण केशवदत्त बहुत चिंतित रहा करता था. पुत्र-प्राप्ति की इच्छा से दोनों पति-पत्नी प्रत्येक मंगलवार को मंदिर में जाकर हनुमानजी की पूजा करते थे. विधिवत मंगलवार का व्रत करते हुए उनलोगों को कई वर्ष बीत गए, पर उन्हें संतान की प्राप्ति नहीं हुई. केशवदत्त बहुत निराश हो गए, लेकिन उन्होंने व्रत करना नहीं छोड़ा. कुछ दिनों के पश्चात् केशवदत्त पवनपुत्र हनुमानजी की सेवा करने के लिए अपना घर-बाड़ छोड़ जंगल चला गया और उसकी धर्मपत्नी अंजलि घर में ही रहकर मंगलवार का व्रत करने लगी. इस प्रकार से दोनों पति-पत्नी पुत्र-प्राप्ति की इच्छा से मंगलवार का विधिवत व्रत करने लगे.
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हनुमानजी
की अनुकम्पा से कुछ महीनों के बाद अंजलि ने एक सुन्दर बालक को जन्म दिया.
मंगलवार को जन्म लेने के कारण उस बच्चे का नाम मंगलप्रसाद रखा गया. कुछ
दिनों के बाद केशवदत्त भी घर लौट आया. उसने मंगल को देखा तो अंजलि से पूछा-
यह सुन्दर बच्चा किसका है? अंजलि ने खुश होते हुए हनुमानजी के दर्शन देने
और पुत्र प्राप्त होने का वरदान देने की सारी कथा सुना दी, लेकिन केशवदत्त
को उसकी बातों पर विश्वास नहीं हुआ. उसके मन में यह कलुषित विचार आ गया कि
अंजलि ने उसके साथ विश्वासघात किया है और अपने पापों को छिपाने के लिए झूठ
बोल रही है.
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मंगलवार
का विधिवत व्रत करने से केशवदत्त और उनके परिवार के सभी कष्ट दूर हो गए.
इस तरह जो स्त्री-पुरुष विधिवत रूप से मंगलवार के दिन व्रत रखते हैं और
व्रतकथा सुनते हैं, अंजनिपुत्र हनुमानजी उनके सभी कष्टों को दूर करते हुए
उनके घर में धन-संपत्ति का भण्डार भर देते हैं और शरीर के सभी रक्त विकार
के रोग भी नष्ट हो जाते हैं.
मंगलवार के व्रत की आरती – Hanuman Chalisa
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जाके बल से गिरिवर कांपै । रोग-दोष जाके निकट न झांपै ।।
अंजनि पुत्र महा बलदाई । संतन के प्रभु सदा सहाई ।।
दे बीरा रघुनाथ पठाए । लंका जारि सिया सुधि लाये ।।
लंका सो कोट समुद्र सी खाई । जात पवनसुत बार न लाई ।।
लंका जारि असुर सब मारे । सियाराम जी के काज संवारे ।।
लक्ष्मण मूर्च्छित पड़े सकारे । लाय संजीवन प्राण उबारे ।।
पैठि पताल तोरि जमकारे । अहिरावण की भुजा उखारे ।।
बाईं भुजा असुर संहारे । दाईं भुजा संत जन तारे ।।
सुर नर मुनि आरती उतारें । जय जय जय हनुमान उचारें ।।
कंचन थार कपूर लौ छाई । आरति करत अंजना माई ।।
जो हनुमान जी की आरती गावे । बसि बैकुण्ठ परमपद पावे ।।
लंक विध्वंस किए रघुराई । तुलसिदास प्रभु कीरति गाई ।
यदि शनिकी साढेसाती हो, तो उस प्रभावको कम करने हेतु हनुमानकी पूजा करते हैं ।
यह विधि इस प्रकार है -
एक कटोरीमें तेल लें व उसमें काली उडदके चौदह दाने डालकर, उस तेलमें अपना चेहरा देखें । उसके उपरांत यह तेल हनुमानको चढाएं । जो व्यक्ति बीमारीके कारण हनुमान मंदिर नहीं जा सकता, वह भी इस पद्धतिनुसार हनुमानकी पूजा कर सकता है । खरा तेली शनिवारके दिन तेल नहीं बेचता, क्योंकि जिस शक्तिके कष्टसे छुटकारा पानेके लिए कोई मनुष्य हनुमानपर तेल चढाता है, संभवत: वह शक्ति तेलीको भी कष्ट दे सकती है । इसलिए हनुमान मंदिरके बाहर बैठे तेल बेचनेवालोंसे तेल न खरीदकर घरसे ही तेल ले जाकर चढाएं ।
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